बोधगया, बिहार (16 मई 2025): ऐतिहासिक बौद्ध स्थल महाबोधि विहार को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। देश-विदेश से आए बौद्ध भिक्षुओं और स्थानीय बौद्ध समुदाय ने ‘बोधगया मंदिर प्रबंधन अधिनियम, 1949’ को “असमान और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ” बताते हुए उसमें संशोधन की मांग की है।
भिक्षुओं और बौद्ध संगठनों का कहना है कि यह विहार बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र स्थल है, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, लेकिन इसके बावजूद विहार के प्रशासन में बौद्धों को पूर्ण नियंत्रण नहीं दिया गया है।

बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949’ के अंतर्गत गठित प्रबंधन समिति में 9 सदस्य होते हैं, जिनमें 4 हिन्दू, 4 बौद्ध और जिला अधिकारी अध्यक्ष होते हैं। इस व्यवस्था को लेकर लंबे समय से बौद्ध समुदाय में नाराजगी है।
🔸 बौद्ध समुदाय की प्रमुख मांगें:
- बोधगया विहार पूरी तरह बौद्धों के नियंत्रण में हो।
- ‘बोधगया विहार प्रबंधन समिति’ से गैर-बौद्ध सदस्यों, विशेषकर ब्राह्मण हिन्दू प्रतिनिधियों को हटाया जाए।
- बोधगया अधिनियम 1949 को या तो निरस्त किया जाए या इसमें संशोधन कर बौद्ध धर्मावलंबियों को निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार दिया जाए।
- UNESCO की विश्व धरोहर सूची में शामिल महाबोधि विहार के स्वरूप को बौद्ध परंपरा के अनुसार संरक्षित किया जाए।
🔹 भिक्षुओं का कहना:
थाईलैंड, श्रीलंका, भूटान, नेपाल, म्यांमार और भारत के विभिन्न हिस्सों से आए भिक्षुओं ने एक संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा:
“यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक बौद्ध स्थल पर, बौद्धों को ही प्रबंधन में समान या पूर्ण भागीदारी नहीं दी गई है। यह अधिनियम उपनिवेशकालीन सोच का प्रतीक है और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।”
🔸 सरकार से अपील:
बौद्ध संगठनों ने बिहार सरकार और भारत सरकार से मांग की है कि वे इस अधिनियम की संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के अनुरूप पुनर्समीक्षा करें। अगर जरूरत पड़ी तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की चेतावनी भी दी गई है।
🔹 प्रशासन की प्रतिक्रिया:
गया जिला प्रशासन ने कहा कि वे स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं और सभी पक्षों के साथ संवाद के लिए तैयार हैं।